वरुण चक्रवर्ती की 5 विकेट के बाद भी भारत हारा: राजकोट T20I में हार की असली वजहें

रिपोर्ट: नवीन प्रताप
पांच विकेट, 25 पायदान की रैंकिंग छलांग और फिर भी टीम हार गई—राजकोट की रात ने भारतीय ड्रेसिंग रूम को यही मिला-जुला एहसास दिया। इंग्लैंड ने तीसरे T20I में 171/9 बनाए और जवाब में भारत 145/9 तक ही पहुंच पाया। स्कोरकार्ड साफ बोलता है, लेकिन कहानी पिच, ओस और बीच के ओवरों में हुए सूक्ष्म बदलावों की है।
मैच की नब्ज: पिच धीमी, ओस नदारद, इंग्लैंड ने चाल चली
टॉस भारत ने जीता और पहले गेंदबाज़ी चुनी—ठीक वैसा ही जैसा पिछले दो मैचों में कामयाब रहा था। दांव ओस पर था, पर ओस आई ही नहीं। दूसरी पारी में सतह और सुस्त हो गई। गेंद बैट पर नहीं आई, शॉट लगाना मुश्किल हुआ और इंग्लैंड के गेंदबाज़ों ने इस देरी को फायदेमंद बना दिया।
पहली पारी में वरुण चक्रवर्ती ने जो किया, उसने भारत को खेल में बनाए रखा। 5/24—T20I में उनका दूसरा फाइव-फर—और इंग्लैंड 180-190 की ओर बढ़ते-बढ़ते 171 पर थम गया। यह वही स्पेल था जिसमें जोस बटलर का बड़ा wicket विकेटकीपर संजू सैमसन के तेज़ कैच से गिरा, फिर जेमी स्मिथ और जेमी ओवरटन को लगातार झटकों में समेट दिया—ओवरटन तो पहली ही गेंद पर चलते बने। यही वजह है कि इस सीरीज़ में वे पहले गेंदबाज़ बने जिनके नाम भारत-इंग्लैंड के द्विपक्षीय T20I में 10+ विकेट दर्ज हैं, और इसी फॉर्म ने उन्हें ICC T20I गेंदबाज़ी रैंकिंग में टॉप-5 तक पहुंचा दिया।
अगर सवाल है कि फिर हार क्यों? जवाब दो हिस्सों में बंटा है। पहला—दूसरी पारी में पिच का टेम्पो गिरना। शॉट की ताकत आउटफील्ड तक नहीं जा रही थी, बैट के ऊपरी हिस्से से बॉल निकल रही थी, यानी टाइमिंग गायब। दूसरा—इंग्लैंड की योजनाबद्ध गेंदबाज़ी। जॉफ्रा आर्चर, ब्रायडन कार्स और जेमी ओवरटन ने मिलकर सात विकेट निकाले, और वो भी इस तरह कि बल्लेबाज़ों को हर ओवर में नई गति, नई लंबाई और नए एंगल झेलने पड़े। हार्ड लेंथ पर क्रॉस-सीम, फिर अचानक स्पीड बदलकर स्लोअर-कटर—यही रिपर्टॉयर मैच का फर्क बना।
बीच के ओवरों में कहानी और सख्त हो गई। आदिल रशीद ने 1/15 के आंकड़े से स्कोरिंग की हवा निकाल दी। उन्होंने रफ्तार पर ऐसा कंट्रोल रखा कि बल्लेबाज़ या तो आगे बढ़ें तो मिस, पीछे रहें तो लैग पर फंसे। गुगली और टॉप-स्पिन का शेड्यूल इतना सटीक था कि सिंगल भी मेहनत से मिल रहा था। यही वो समय था जब रन-रेट बढ़ा, दबाव बढ़ा और विकेट गिरते गए।
भारत की बल्लेबाज़ी की शुरुआत में इरादा तेज़ था, लेकिन पावरप्ले में एक-दो विकेट गिरते ही टोन बदला। टारगेट 172 का था—आम तौर पर राजकोट के हिसाब से चेजेबल—लेकिन सतह के धीमे होते ही बाउंड्री खोज पाना मुश्किल हो गया। शॉट सेलेक्शन भी असर में आया: ऑफ-पेस गेंदें, बैक-ऑफ-लेंथ पर, और लंबा साइड टारगेट करने की कोशिश—रिज़ल्ट, कैचिंग प्रैक्टिस। आख़िर में निचला क्रम बहुत कुछ करने के लिए रह गया, जो संभव नहीं हुआ।
टीम की रणनीति पर लौटें तो टॉस गलत नहीं था—चेज़िंग टेम्पलेट पिछले दो मैचों में चल चुका था। लेकिन T20 में एक ही गलती काफी होती है: ओस का मिस-रीड। गेंद सूखी रही, स्पिनर्स के लिए ग्रिप बनी रही, और सीमर्स को ग्रिप-चेंज मिलती रही। ऐसे में चेज़ का ‘फ्लैट-ट्रैक’ अनुमान उल्टा पड़ गया।
- टर्निंग प्वाइंट 1: रशीद के ओवर—इन्होंने रन-रेट जाम कर दी, नतीजा दबाव और विकेट।
- टर्निंग प्वाइंट 2: आर्चर-कार्स-ओवरटन के बदलाव—हर ओवर अलग प्लान, बल्लेबाज़ सेट नहीं हो पाए।
- टर्निंग प्वाइंट 3: दूसरी पारी में सतह का दो-गति होना—टाइमिंग खोई, बड़े शॉट दुश्वार।
इंग्लैंड की पहली पारी में भी भारतीय गेंदबाज़ों ने बीच-बीच में पकड़ बनाई, लेकिन वरुण के अलावा दूसरे छोर से लगातार दबाव उतना नहीं टिक पाया। यही वजह थी कि इंग्लैंड 140-150 के बजाय 170 के आसपास निकल गया—सीमित लेकिन निर्णायक फासला।

वरुण का असर, रशीद का क्लास और आगे की राह
वरुण चक्रवर्ती की बात अलग है। उन्होंने लाइन ऑफ-स्टंप के ठीक बाहर से बल्लेबाज़ को ड्रैग कराया, स्पीड बदली, और लेंथ ऐसी रखी कि ड्राइव-स्वीप दोनों रिस्क में रहें। यह वही स्किल-सेट है जो T20 में ओस हो या न हो, काम आता है। बटलर का विकेट मोमेंटम शिफ्ट था, और डेथ में उनकी गेंदें इंग्लैंड को 10-15 रन और कम पर रोक सकती थीं, अगर एक-दो कैच और हाथ में चिपक जाते।
दूसरी तरफ, आदिल रशीद का 1/15 इस मैच का ‘अनसीन हीरो’ स्पेल रहा। 24 गेंदों में उन्होंने वो कराया जो स्कोरकार्ड पूरी तरह नहीं बताता—हर ओवर में एक डॉट-बॉल क्लस्टर, एक मिस-हिट और एक ‘रिस्क-बनाम-रिवॉर्ड’ की पहेली। उन्होंने हवा में रफ्तार का गियर बदलकर बल्लेबाज़ को गलत शॉट में धकेला। यही अनुभव इंग्लैंड के लिए ढाल बना।
भारतीय बल्लेबाज़ी के लिए सीख साफ है: जब पिच दो-गति हो, स्लॉग से पहले सिंगल-डबल का बेस बनाना ज़रूरी है। स्ट्राइक रोटेशन नहीं होगा तो बाउंड्री पर निर्भरता बढ़ेगी, और वहीं मैच फिसलेगा। ऐसे हालात में रिवर्स-स्वीप, लेट-कट जैसे शॉट जो रफ्तार और कोण बदलते हैं, विकल्प बनते हैं—शर्त सिर्फ़ वही कि चयन सही गेंद पर हो।
चयन और कॉम्बिनेशन पर भी नज़र पड़ेगी। अगर टीम मैनेजमेंट को ओस की उम्मीद फिर न दिखे, तो एक अतिरिक्त रोटेशन-हिटर या एंकर-प्रोफाइल बल्लेबाज़ पर विचार हो सकता है, ताकि बीच के ओवरों में रेट काबू में रहे। गेंदबाज़ी में वरुण के साथ दूसरे छोर से लंबा दबाव कैसे बनाया जाए—यह अगला टैक्टिकल सवाल है।
सीरीज़ संदर्भ भी अहम है। यह हार भारत को 3-0 की पकड़ से रोकती है और इंग्लैंड को 2-1 से वापसी का भरोसा देती है। अगले मैचों में टॉस से ज्यादा असल परीक्षा पढ़ाई की होगी—पिच पढ़ना, ओस की थ्योरी पर आंख मूंदकर नहीं जाना, और बीच के ओवरों के लिए स्पष्ट रन-मैप बनाना।
एक बात तय है: वरुण चक्रवर्ती का यह दौर भारतीय T20 सेटअप के लिए बड़ी पूंजी है। उनकी लेंथ-डिसिप्लिन और वैरिएशन उन्हें किसी भी सतह पर प्रासंगिक बनाते हैं। वहीँ इंग्लैंड के लिए रशीद की मौजूदगी अभी भी मैच-चेंजर है—और जब तेज़ गेंदबाज़ उनकी प्लानिंग को सपोर्ट करें, तो 170 जैसा स्कोर भी डिफेंड हो जाता है।
राजकोट की रात ने इतना तो बता दिया—T20 में छोटे-छोटे फायदे बड़े फर्क बनाते हैं। एक सूखी गेंद, एक ओवर का डॉट-क्लस्टर, एक पकड़ जो हाथ में चिपक जाए—यहीं मैच पलटते हैं। और इस बार, ये बारीकियां इंग्लैंड के खाते में गईं।