नई दिल्ली: उरी अटैक के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच के 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि के टूटने के संकेत मिल रहें हैं। भारत ने स्पष्ट किया कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए ‘परस्पर विश्वास और सहयोग’ होना जरुरी है। सरकार की ओर से यह बयान उस वक्त आया है जब भारत में ऐसी मांग उठी है कि उरी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए इस जल बंटवारे समझौते को खत्म किया जाए।
#UriAttack के बाद पाक के खिलाफ ये होगी बड़ी कार्रवाई –
#UriAttack के बाद सिंधु नदी समझौता अगर रद्द होता है। तो पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हो सकता है। ऐतिहासिक सिंधु घाटी सभ्यता इसी सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे फली फूली और अब भी ये नदी पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से की प्यास बुझाती है।
इसी रणनीति के तहत इस बात पर विचार हो रहा है कि 1960 में हुए सिंधु नदी जल समझौते को रद्द कर दिया जाए। जानकारों की मानें तो अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील हो सकता है।
पाकिस्तान के लिए सिंधु नदी जल समझौते उसकी लाइफ लाइन की तरह है। दरअसल सिंधु जल संधि में सतलुज, व्यास, रावी, सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के पानी के बंटवारे के लिए व्यवस्था की गई है। संधि के तहत सतलज, व्यास और रावी का अधिकतर पानी भारत के हिस्से में रखा गया जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब का अधिकतर पानी पाकिस्तान के हिस्से में गया।
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