मारे लिए बॉर्डर या तो राज्यों के बीच होते हैं, या फिर देशों के, या ज़्यादा से ज़्यादा जेपी दत्ता की उस फ़िल्म के नाम में. लेकिन एक सैनिक के लिए बॉर्डर क्या होता, ये सिर्फ़ वही जानता है.
कश्मीर पर देश की रखवाली करने वाले आधे से ज़्यादा जवानों को नहीं पता रहता कि वो कल की सुबह देख पाएंगे नहीं, शायद इसलिए वो अपना हर दिन अपनी ड्यूटी को देते हैं. CRPF जवानों से भरी एक बस प्रैक्टिस सेशन से पम्पोर में बने अपने बेस वापस जा रही थी, तभी उन पर ताबड़-तोड़ हमले हुए. बात 25 जून की है, इस Ambush अटैक में आतंकवादियों ने बस पर जम कर गोलियां बरसाईं. 4 सैनिक शहीद हुए तो कई घायल, उनमें से एक थे खुर्शीद अहमद.
इस फौजी पर ताबड़-तोड़ 8 गोलियां लगी थीं, जिनमें से 7 निकाली जा चुकी हैं और 1 इसलिए बाकी है क्योंकि वो उनकी पीठ के ऐसे हिस्से में लगी है, जहां से उसे अभी निकालना खतरनाक हो सकता है. जानते हैं, हॉस्पिटल में अपनी चोट और घाव से जूझ रहे इस फौजी का क्या कहना है?
खुर्शीद अहमद का कहना है कि वो 8 गोलियां खाने के बाद भी दोबारा देश के लिए लड़ेगा!
8 गोलियां खाने वाले खुर्शीद को अकेले पीठ पर 4 गोलियां लगी हैं, जो सभी निकाली जा चुकी हैं. खुर्शीद पिछले 2 महीनों से हॉस्पिटल में भर्ती हैं और वहां उनका ध्यान उनके बड़े भाई रख रहे हैं. खुर्शीद को अपनी लोअर बॉडी में कोई हरारत महसूस नहीं होती. लेकिन इसने उनके जोश और हौसले को बिलकुल भी पस्त नहीं किया है. वो ठीक होते ही दुश्मनों के खिलाफ धावा बोलने को तैयार रहेंगे.
अपने इंटरव्यू में खुर्शी ने कहा:
मैं अभी ठीक नहीं हूं लेकिन वापस जा कर अपने देश के लिए लड़ना चाहता हूं. वो आतंकवादी मुझे मारना चाहते थे, लेकिन मैं बच गया. मैं किसी मकसद के लिए ही बचा हूं. मैं अपनी आखरी सांस तक इस देश के लिए लड़ूंगा.
एक फौजी के लिए हमेशा इज़्ज़त इसलिए रहती है क्योंकि वो देश के लिए अपनी छाती पर गोली खाता है. सुख-चैन तो प्राइवेट नौकरी वाले भी लुटा रहे हैं, लेकिन गोली खाना हर किसी के बस की बात नहीं. खास कर उनकी तो बिलकुल नहीं, जिन्हें बस फौजियों की याद 15 अगस्त और कारगिल दिवस के दिन आती है.